लोग भी तो,
जैसे
एक कहानी ही होते हैं
और
कहानियाँ,
जैसे कि लोग,,!!
अनेक प्रकार के लोग मिलते हैं संसार में,
जैसे
कई किस्म की कहानियाँ फिरती हैं बाज़ार में,
कहानियाँ जैसे,
कुछ बिलकुल उबाऊ,
कुछ बेहद दिलचस्प,
कुछ संवेदनशील,
कुछ प्रेरणादायक,
कुछ रूमानियत से भरी,
कुछ जैसे रहस्यमयी,
कुछ बचपना सा रखती,
कुछ जिम्मेदारियों सी खिलती,
कुछ नैतिक मूल्यों से भरपूर,
और कुछ सिखाती बेईमानी के गुर,
कुछ मासूम सी जैसे सुबह की हल्की धूप,
और कुछ जो कहे बहुत कुछ,रहकर मद्धम सा चुप,
कुछ जो दिल को छू जाये,
कुछ जिन्हें हम कबका बिसरा आये,,
क्या लोग भी ऐसे ही नहीं होते हैं बिल्कुल,,??!!
लोग जैसे,
कुछ जो रहते हैं उम्र भर तक दिलो-दिमाग में,
कुछ जो साथ देते हैं हर धूप-छाँव में,
कुछ जो स्मृतियों में इस तरह धूमिल हो जाते हैं,
कि चेहरा देख कर भी याद ना आने पाते हैं,,
कुछ जिनको रखना चाहते हैं हम अपने साथ ताउम्र,
और कुछ जिनसे मिल के लगे mood हो गया चकनाचूर,
कुछ जिनके साथ वक़्त बिताने में मजा आये,
और कुछ जिनके होने को सिर्फ महसूस किया जाए,
कुछ जिन्हें सुन कर लगता है,हमारे मन की कह गए,
और कुछ को देखकर लगता है,काहे को इतना शोर मचाये,,
क्या कहानियाँ भी ऐसी ही नहीं होती हैं बिल्कुल,,??!!
हर इंसान की होती है,
शब्दों में घुली एक कहानी,
जो होती है सार उसके पूरे जीवन का,
और
कहानियों को पढ़ कर भी तो लगता है ना,
कि पात्र साक्षात् जीवंत हो कर चल रहे है
बिल्कुल इंसानों के भेस में,,!!
तो ये कहना
कि लोग होते हैं जैसे कि कहानियाँ,
और
कहानियाँ होती हैं जैसे कि लोग,
”गलत तो नहीं”??!!!