Monday 5 March, 2012

3 liners(an experiment)

टूटे सपने,
रिसती उम्मीदें,
भारी ज़िन्दगी..!

आकुल आरजुएं,
छटपटाते प्रयास,
थकी ज़िन्दगी..!

फैला आसमां,
सिकुड़े पंख,
रुकी ज़िन्दगी..!

बेमानी रिश्ते,
तर्कहीन समझौते,
फँसी ज़िन्दगी..!

बंधन खुले,
मंजिल चले,
हँसी ज़िन्दगी..!!!!
 

नाम

जो चली गयी,,
उसी का नाम तो ज़िन्दगी था,

जो बाकी है,,
उसका नाम तो चंद साँसों के सिवा
कुछ भी नहीं…!!

Friday 2 March, 2012

तो गलत होगा न,, इसके लिए किसी और से शिकायत गर करें..!!

आ गयी ज़िन्दगी की असलियत एक पल में नज़र के सामने,
जब टूटे सपनों  की कलम से भरने ज़िन्दगी के पन्ने  हम  चले…!!

रुकने की फुर्सत जब एक पल के लिए भी  देती नहीं ज़िन्दगी,
तो भागती राहों पर पैर टिकाते कभी पैर दौड़ाते कैसे बन पड़े..!!

अपने ही समय से अपने लिए ही वक़्त चुराना लगता है नासाज,
पुकारें आने लगती है गर एक पल भी  खुद से बतियाने हम लगे..!!

ज़िन्दगी की ऐसी  शक्लो- सूरत  भी तो पर हम ही लोग चुनते हैं,
तो गलत होगा न,, इसके लिए किसी और से शिकायत गर करें..!!

सीलन

बातें पी पी के,
सीलन आ गयी दिल की दीवारों पे,
सोच रही हूँ,
‘मुरम्मत करवा लूँ’..!!

सुनो,
सीलन खुरचुं अगर
तो टुकड़े  पकड़ने  आओगे ना..!!!

जुड़ाव

क्या कमाल बात है,
उन गलियों से भी मुझे बेहिसाब  जुड़ाव महसूस होता है,

गुजारा  है जिनमे बचपन अपना
मेरे महबूब ने
या
गुजरा  करते थे जिनसे  जनाब
कभी  बस यूँ ही….!!!

4 liner

 हम तो कबके पिघल जाते उनकी बांहों में,,मगर
 उन्होंने कभी कहा ही नहीं कि वो हमारे बिन अकेले हैं…
 अजब गज़ब सी ही है इस इश्क की तासीर जनाब,
 यहाँ तो साहिलों पे भी उठते ज्वार-भाटों के  रेले हैं…!!!!