Friday 23 December, 2011

अमावस

पूनम की रातें थी,
एक चाँद धरती के आंचल में
नगीने सा चमक रहा था,
और दूजा
ख़ुशी के जैसे आँखों में दमक रहा था…

मगर……………….
देखते ही देखते
एक आंधी सी आई
और चाँद  बुझा बुझा बेबस सा
टपकने लगा झर झर
आँखों से,

हिम्मत करके नजर उठाई ,

ऊपर देखा,
आँचल उधड चुका था,

”रातें अब अमावस में बदल चुकी थी”….!!

जब जब(couplet)

जब जब की ज़िन्दगी से  अपने लिए कुछ पल चुराने की कोशिश,,
वक़्त ने तब तब ला के दुनियादारी के दरवाज़े पर छोड़ दिया…!!!!

Monday 19 December, 2011

मैं तैनू फिर मिलांगी

अपनी पसंदीदा कविताओं में से एक यहाँ पोस्ट कर रही हूँ...गुलज़ार साब की आवाज़,अमृता प्रीतम जी की कविता,भावनाओं का समंदर है साब.... 

Monday 12 December, 2011

सपनों की बचत

 सपने भी
कुछ हद तक हमारी बचत के जैसे ही तो होते है ना…!!

जैसे बचत को जमा कर के बैंक में,,
हम इंतजार करते हैं…
सोचते हैं इसका फल मिलेगा कुछ सालों बाद…
तो ज़िन्दगी थोड़ी सी बदल जाएगी,,
कुछ ख्वाहिशें पूरी हो जाएगी…

क्या वैसे ही सपनों की पौध नहीं बोते हम..!

किसी गुल्लक में
और
सहेज के रख देते हैं उसे,
आँखों के,,दिल के और घर के किसी कोने में…
इस इंतज़ार में,,,इन कल्पनाओं में,
कि
क्या होगी, कैसी  बात होगी..!!
जब ये पौध फल-फूल कर
मुकम्मल होकर
ज़िन्दगी  संवारेगी.,,
और हमें भी तो…….!


मगर सपनों की बचत 
हमेशा फौलादी इरादों वाले लोहे के बक्से में ही करनी चाहिए,,,
किसी मिटटी की गुल्लक में नहीं..,,

वो क्या है ना,,
अगर नियति रुपी बच्चे का मन मचल उठा,
इस गुल्लक से खेलने के लिए,,
तो
तुम्हारे सपनों को टूटने से कोई बचा नहीं पायेगा…
तुम्हारी गुजारिशें,,तुम्हारी कोशिशें तक  नहीं…..
कोई नहीं,,कुछ नहीं..!!!!!
 
 

Sunday 11 December, 2011

Mistress of the Game

 एक नोवेल ख़तम किया है अभी अभी...'' Mistress of the Game '' by Tilly Bagshawe ....ये एक sequel  है sidney sheldon के नोवेल MASTER OF THE GAME का.....अच्छा है,,रुचिकर भी,,आखिर तक बांधे भी रखता है पर कई जगह मुझे लगा थोडा खिंच सा गया है...जिनको fiction पसंद है,उनको यक़ीनन पसंद आएगा...how a big empire become  a dianosaur and engulfs all the connected personalities or heirs slowly slowly by making run the ambitions instead of the blood into all of them has been depicted nicely...इसके भी sequel लिखने की पूरी गुंजाईश बना के छोड़ी है (शायद हो भी और मुझे न पता हो)...अगली बुक जो पढनी शुरू करने वाली हूँ,वो है VS NAIPAUL की autobiography .... it iz also sounding interesting...will post about dis also.. :)

Saturday 10 December, 2011

शब्द

शब्द  इकटठे कर रही हूँ,
एक नज़्म  की शक्ल को आकार देने के लिए,,

मगर शब्द
मिटटी नहीं होते ना,
पकड़ में कहाँ ही आ पाते हैं
गर गीले हो जायें तो,,

सो हारने लगी हूँ..!!!

इन्सां की सोच से गुजरकर क्यों ईश्वर उसका भाग्य नहीं लिखता..!!

 ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है,तलाश को  मगर आराम नहीं मिलता,
इन्सां की ख्वाहिशों को  अक्सर  कोई  जायज मुकाम नहीं मिलता..!

जाने कौन सी सिलाइयों से पैबंद जड़ते हैं ज़िन्दगी में लोग,
समझौतों के इन पैबन्दों का मुंह जो कभी भी नहीं फिसलता..!

कोलाहल भी चलता है मन में और द्वन्द भी होता है अवश्य,
पर शर्त निभानी है ज़िन्दगी की,सो ये शोर बाहर नहीं निकलता..!

भाग्य की चोट से कुचलकर मात खा जाते हैं क्यूँ सदा अच्छे ही लोग,
जाने  इन्सां की सोच से गुजरकर क्यों  ईश्वर उसका  भाग्य नहीं लिखता..!!
 
 
 

Wednesday 7 December, 2011

इश्क सिक्के जैसा

इश्क 
१००–२००–५०० रुपये के
नोट जैसा नहीं होना चाहिए,,

कि पाया,,
और कब खर्च हो गया,
मालूम ही ना पड़े….

वो तो
ऐसा होना चाहिए जैसे
चवन्नी,,अट्ठन्नी या एक रुपये का सिक्का,,

जो सालों बाद भी
पुराने कपड़ों को झाड़ने भर से निकल आये,,

कहीं किसी कोने से
दिल के………….!!!!

सैयां नैनों की भाषा समझें ना

आजकल सोनी चैनल पे एक सीरियल देख रही हूँ ,'' कुछ तो लोग कहेंगे''...... पाकिस्तानी नोवेल धूप किनारे पर based ,, थोडा रोचक सा लगने लगा है...बेशक वास्तविकता से थोडा अलग है अभी पर अंत क्या रहेगा,,जानना यक़ीनन चाहूंगी मैं.. उसी का एक विडियो यहाँ पोस्ट कर रही हूँ....आवाज़,सुर और लफ्ज़ दोनों अच्छे हैं...सोचा,क्यूँ न ब्लॉग पे शेयर किया जाये

Monday 5 December, 2011

तुम्हारा क्या है…?

 याद है तुम्हें,
कैसे खीज जाती थी मैं,

तुम्हारी उटपटांग शरारतों पे,
मुझे तंग करने की तुम्हारी चालाकी  भरी  कोशिशों पे,
जिनमे सफल हो ही जाते थे तुम हर बार,
और मेरे चिढ जाने पर कहते थे,
”तुम्हें चिढाने में बड़ा मजा आता है…!!

और मैं खीज कर कह उठती थी,
”ऐसा भी कोई करता है भला?”

और तुम बड़े मजे से कहते थे,
”मैं करता हूँ ना”!!

और मैं कहती थी,,”तुम तो ‘बुद्धू’ हो,,तुम्हारा क्या है…?”

कैसे तुम मेरा हाथ पकड़कर,
अपने पास खींचकर  धीरे से
मेरे कान में कहते थे,
”मेरी तुम हो”….

बाखुदा.! एक गुमान आ जाता था खुद पर…..

और फिर तो अक्सर
तुम्हारी किसी भी बात पे,
बिना चिढ़े,,
पर दिखाकर कि मुझे चिढ हो रही है….
कह दिया करती थी मैं,
”तुम्हारा क्या है”?
जवाब में बस वो लफ्ज़  सुनने के लिए…..
उस गुरूर को महसूस करने के लिए…..

बाखुदा.! मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत पल होता था वो…..

और अब
जब तुम आस पास नहीं हो,
दूर दूर तक नहीं हो,
तुम्हारे न होने के एहसास पर ही
खीज जाती हूँ मैं,
और आदत के मुताबिक कह जाती हूँ,
”ऐसा कोई करता है भला,,”
”मैं करता हूँ ना”,,,सुने बिना ही
कहती हूँ पिघल कर,
”तुम तो बुद्धू हो,तुम्हारा क्या है?”

कि शायद
किसी दिशा से तो जवाब आएगा,
तुम फिर से मेरे पास आकर
मेरे कान में हौले से कहोगे,” मेरी तुम हो…”

आ जाओ ना एक बार प्लीज़..
कह दो ना फिर से….

बाखुदा.! खुद पे गुरूर करने की आज बड़ी चाह हो रही है…!!
 
 
 

Thursday 1 December, 2011

समझौते

adjustments एंड compromises हम सभी करते हैं ज़िन्दगी में..!! इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि adjustment बहुत जनरल सी category में मानी जाती है और इसको करने के बाद इसके बारे में न ज्यादा सोचा जाता है,,न ही दिल में कोई टीस रहती है...साथ रहने वालों लोगों कि nature केसाथ अपने आप को ढाल लेना कहलाना है adjustment और येज्यादा परेशां भी नहीं करती आपको,अगले ही पल आपमें शामिल हो कर आपको relax ही कर देती है और compromise ठीक इसका उलट..जब आप किसी को अपनी बात समझाने में नाकाम हो जातेहै हर तरह से और आपके पास उसकी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं रहता,तो वो कहलाता है compromise जिसकी टीस हमेशा उठती रहती है दिल में और जो कभी भूलता भी नहीं है unlike अद्जुस्त्मेंट्स....हर इंसान अपनी ज़िन्दगी में ये दोनों,यानी adjustments n compromises करता ही करता है...मैंने भी किये हैं..
आज कुछ पुराने compromises के ज़ख्मो को सूरज की पहली किरण के साथ ही नमक सा चुभना शुरू हो गया है,इसलिए जो दिल में आ रहा है बस लिखे जा रही हूँ,,बिना किसी मतलब की तलाश के...
कुछ पुराने compromises जो एक 'काश' को अचानक ही हिस्सा बना देते हैं आपकी ज़िन्दगी का और कुछ समझोते ऐसे जो और लोगों कि वजह से नहीं,,बल्कि कभी किस्मत तो कभी हालात की वजह से होते हैं लेकिन आपकी ज़िन्दगी का पूरे का पूरा प्लान ही बिगाड़ कर रख देते हैं,,आपके अस्तित्व को ही तबाह करके रख देते हैं..!! और ये किस्मत भी कमाल चीज़ है,,गुस्सा भी करेंगे आप तो न वो सुनेगी और न वो बदलेगी ही...19 -20 साल की उम्र में लगता है कि हम अपनी किस्मत खुद बनाते हैं,,शायद कई बनाते भी हैं या उनकी किस्मत उनका भरपूर साथ भी देती है पर उन लोगो ने जिन्होंने ज़िन्दगी को बहुत,,बहुत करीब से देखा है,जिनसे ज़िन्दगी भी खफा खफा सी रहती है,पता नहीं क्यूँ,,उन लोगो का भरम तो वो सपनीली उम्र पार करते ही टूट जाता है और यकायक किस्मत में विश्वास होने लगता है क्यूंकि महसूस हो रहा होता है कि कुछ तो ऐसा है जो आपको आगे बढ़ने से रोक रहा होता है जबकि आप अपनी पूरी ताक़त के साथ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे होते है लेकिन एक frictional force जैसे आपकी हर मासूम कोशिश,हर जोरदार कोशिश और हर मुलायम सपने को ज़ंजीरों में बाँध कर तोड़ देने के लिए हर वक़्त तैयार खड़ा है....वहां से शुरू होते है समझौते उस frictional force के according और मजे की बात ये कि आप शिकायत भी नहीं कर सकते किसी से ; बस दिल में एक गुस्से  का बुलबुला कभी उठता,कभी बैठता रहता है और अगर ऐसे अनेक बुलबुले हो जाएँ तो क्या करेंगे आप..??
लेकिन ये सारी बातें हमें समझाने के बाद भी ज़िन्दगी खुद तो ये नहीं समझती न और life moves on का tag लेकर हमीं चल पड़ते हैं जाने कौन से अनजान रास्तों की तरफ..ये वो स्टेज होती है जब आने वाली ज़िन्दगी से 
डर ज्यादा  लगता है; हर सांस में ज़िन्दगी को भर लेने का आपका फलसफा तो पीछे रास्ते में कहीं चोट खाया घायल जो पड़ा है..!!
काश ज़िन्दगी के खेल में किसी की यूँ हार न होती,एक ऐसी जीत हो जिसे हर कोई संजोना चाहे लेकिन अफ़सोस,ऐसा कभी होगा नही और हमेशा इंसान ही जिम्मेदार नहीं होता स्थितियों को क़ुबूल न करने के लिए;स्थितियां भी होती है जिम्मेदार खुद को क़ुबूल न करवाने के लिए..!! इंसान तो हमेशा कोशिश करता है सामंजस्य बैठा लेने की और टूटी फूटी ज़िन्दगी के टुकड़ों को जोड़कर फिर से एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की....




आओ,,हर समझौते,हर frictional force के बावजूद तस्वीरों के मुकम्मल होने की चाह करें...!!!!