Monday, 12 December 2011

सपनों की बचत

 सपने भी
कुछ हद तक हमारी बचत के जैसे ही तो होते है ना…!!

जैसे बचत को जमा कर के बैंक में,,
हम इंतजार करते हैं…
सोचते हैं इसका फल मिलेगा कुछ सालों बाद…
तो ज़िन्दगी थोड़ी सी बदल जाएगी,,
कुछ ख्वाहिशें पूरी हो जाएगी…

क्या वैसे ही सपनों की पौध नहीं बोते हम..!

किसी गुल्लक में
और
सहेज के रख देते हैं उसे,
आँखों के,,दिल के और घर के किसी कोने में…
इस इंतज़ार में,,,इन कल्पनाओं में,
कि
क्या होगी, कैसी  बात होगी..!!
जब ये पौध फल-फूल कर
मुकम्मल होकर
ज़िन्दगी  संवारेगी.,,
और हमें भी तो…….!


मगर सपनों की बचत 
हमेशा फौलादी इरादों वाले लोहे के बक्से में ही करनी चाहिए,,,
किसी मिटटी की गुल्लक में नहीं..,,

वो क्या है ना,,
अगर नियति रुपी बच्चे का मन मचल उठा,
इस गुल्लक से खेलने के लिए,,
तो
तुम्हारे सपनों को टूटने से कोई बचा नहीं पायेगा…
तुम्हारी गुजारिशें,,तुम्हारी कोशिशें तक  नहीं…..
कोई नहीं,,कुछ नहीं..!!!!!
 
 

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