Thursday 1 December, 2011

समझौते

adjustments एंड compromises हम सभी करते हैं ज़िन्दगी में..!! इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि adjustment बहुत जनरल सी category में मानी जाती है और इसको करने के बाद इसके बारे में न ज्यादा सोचा जाता है,,न ही दिल में कोई टीस रहती है...साथ रहने वालों लोगों कि nature केसाथ अपने आप को ढाल लेना कहलाना है adjustment और येज्यादा परेशां भी नहीं करती आपको,अगले ही पल आपमें शामिल हो कर आपको relax ही कर देती है और compromise ठीक इसका उलट..जब आप किसी को अपनी बात समझाने में नाकाम हो जातेहै हर तरह से और आपके पास उसकी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं रहता,तो वो कहलाता है compromise जिसकी टीस हमेशा उठती रहती है दिल में और जो कभी भूलता भी नहीं है unlike अद्जुस्त्मेंट्स....हर इंसान अपनी ज़िन्दगी में ये दोनों,यानी adjustments n compromises करता ही करता है...मैंने भी किये हैं..
आज कुछ पुराने compromises के ज़ख्मो को सूरज की पहली किरण के साथ ही नमक सा चुभना शुरू हो गया है,इसलिए जो दिल में आ रहा है बस लिखे जा रही हूँ,,बिना किसी मतलब की तलाश के...
कुछ पुराने compromises जो एक 'काश' को अचानक ही हिस्सा बना देते हैं आपकी ज़िन्दगी का और कुछ समझोते ऐसे जो और लोगों कि वजह से नहीं,,बल्कि कभी किस्मत तो कभी हालात की वजह से होते हैं लेकिन आपकी ज़िन्दगी का पूरे का पूरा प्लान ही बिगाड़ कर रख देते हैं,,आपके अस्तित्व को ही तबाह करके रख देते हैं..!! और ये किस्मत भी कमाल चीज़ है,,गुस्सा भी करेंगे आप तो न वो सुनेगी और न वो बदलेगी ही...19 -20 साल की उम्र में लगता है कि हम अपनी किस्मत खुद बनाते हैं,,शायद कई बनाते भी हैं या उनकी किस्मत उनका भरपूर साथ भी देती है पर उन लोगो ने जिन्होंने ज़िन्दगी को बहुत,,बहुत करीब से देखा है,जिनसे ज़िन्दगी भी खफा खफा सी रहती है,पता नहीं क्यूँ,,उन लोगो का भरम तो वो सपनीली उम्र पार करते ही टूट जाता है और यकायक किस्मत में विश्वास होने लगता है क्यूंकि महसूस हो रहा होता है कि कुछ तो ऐसा है जो आपको आगे बढ़ने से रोक रहा होता है जबकि आप अपनी पूरी ताक़त के साथ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे होते है लेकिन एक frictional force जैसे आपकी हर मासूम कोशिश,हर जोरदार कोशिश और हर मुलायम सपने को ज़ंजीरों में बाँध कर तोड़ देने के लिए हर वक़्त तैयार खड़ा है....वहां से शुरू होते है समझौते उस frictional force के according और मजे की बात ये कि आप शिकायत भी नहीं कर सकते किसी से ; बस दिल में एक गुस्से  का बुलबुला कभी उठता,कभी बैठता रहता है और अगर ऐसे अनेक बुलबुले हो जाएँ तो क्या करेंगे आप..??
लेकिन ये सारी बातें हमें समझाने के बाद भी ज़िन्दगी खुद तो ये नहीं समझती न और life moves on का tag लेकर हमीं चल पड़ते हैं जाने कौन से अनजान रास्तों की तरफ..ये वो स्टेज होती है जब आने वाली ज़िन्दगी से 
डर ज्यादा  लगता है; हर सांस में ज़िन्दगी को भर लेने का आपका फलसफा तो पीछे रास्ते में कहीं चोट खाया घायल जो पड़ा है..!!
काश ज़िन्दगी के खेल में किसी की यूँ हार न होती,एक ऐसी जीत हो जिसे हर कोई संजोना चाहे लेकिन अफ़सोस,ऐसा कभी होगा नही और हमेशा इंसान ही जिम्मेदार नहीं होता स्थितियों को क़ुबूल न करने के लिए;स्थितियां भी होती है जिम्मेदार खुद को क़ुबूल न करवाने के लिए..!! इंसान तो हमेशा कोशिश करता है सामंजस्य बैठा लेने की और टूटी फूटी ज़िन्दगी के टुकड़ों को जोड़कर फिर से एक मुकम्मल तस्वीर बनाने की....




आओ,,हर समझौते,हर frictional force के बावजूद तस्वीरों के मुकम्मल होने की चाह करें...!!!!

1 comment:

  1. तस्वीर बहोत खुबसूरत लगायी है

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