वो फ़साना
जो हकीकत ना बन सका,,
वो हकीकत
जो सिर्फ एक फ़साना बन कर रह गयी,,
वो कुछ और नहीं,,मेरी मोहब्बत की दास्ताँ है..
हाँ, वही दास्ताँ,
जिसके हर लिखे और हर कोरे पन्ने पर आज भी
तुम्हारा चेहरा
सूरज की भांति चमकता है
और चाँद की तरह मेरे उदास मन को ठंडक पहुंचाता है…
मन,
जो उदास हो कर के भी उदास नहीं है,
क्योंकि,
तुम्हारी मोहब्बत के शीशे में खुद को
इठलाता,,खिलखिलाता,,गुनगुनाता जो देखता है अक्सर..
पर जैसे ही हकीकत का पानी
इस शीशे को छू के गुज़र जाता है,
और धुंधले कर जाता है हंसती खेलती कल्पनाओ के चेहरे,,
मन भी शीशे के जैसे चूर चूर हो कर
उदास हो जाता है उसी क्षण,,
और फिर
फ़साने की यादें मन की वादियों में उतरकर
चारों तरफ फैला लेती हैं अपना साम्राज्य,,
और मेरा मन इस साम्राज्य की धरती होते हुए भी,
बन जाता है सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा इस पूरी विशालता का,,
और तुम
धीरे धीरे अपने पाँव बढ़ाते जाते हो इस धरती पर
जैसे कभी धूप,कभी अँधेरा बढ़ता जाता है आगे
सब कुछ अपनी आगोश में लेते हुए,,
पर मैं इस आगोश में होकर के भी नहीं हूँ,
और तुम मेरे पास होकर के भी नहीं हो,,
और इसीलिए है ये दास्ताँ एक ऐसा फ़साना,
जो हकीकत ना बन सका…………….जिस्म के शब्दों में,,
और साथ ही रोम रोम में बसी एक ऐसी हकीकत,
जो एक फ़साना बन कर रह गयी…………………रूह के शब्दों में….!!!
जो हकीकत ना बन सका,,
वो हकीकत
जो सिर्फ एक फ़साना बन कर रह गयी,,
वो कुछ और नहीं,,मेरी मोहब्बत की दास्ताँ है..
हाँ, वही दास्ताँ,
जिसके हर लिखे और हर कोरे पन्ने पर आज भी
तुम्हारा चेहरा
सूरज की भांति चमकता है
और चाँद की तरह मेरे उदास मन को ठंडक पहुंचाता है…
मन,
जो उदास हो कर के भी उदास नहीं है,
क्योंकि,
तुम्हारी मोहब्बत के शीशे में खुद को
इठलाता,,खिलखिलाता,,गुनगुनाता जो देखता है अक्सर..
पर जैसे ही हकीकत का पानी
इस शीशे को छू के गुज़र जाता है,
और धुंधले कर जाता है हंसती खेलती कल्पनाओ के चेहरे,,
मन भी शीशे के जैसे चूर चूर हो कर
उदास हो जाता है उसी क्षण,,
और फिर
फ़साने की यादें मन की वादियों में उतरकर
चारों तरफ फैला लेती हैं अपना साम्राज्य,,
और मेरा मन इस साम्राज्य की धरती होते हुए भी,
बन जाता है सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा इस पूरी विशालता का,,
और तुम
धीरे धीरे अपने पाँव बढ़ाते जाते हो इस धरती पर
जैसे कभी धूप,कभी अँधेरा बढ़ता जाता है आगे
सब कुछ अपनी आगोश में लेते हुए,,
पर मैं इस आगोश में होकर के भी नहीं हूँ,
और तुम मेरे पास होकर के भी नहीं हो,,
और इसीलिए है ये दास्ताँ एक ऐसा फ़साना,
जो हकीकत ना बन सका…………….जिस्म के शब्दों में,,
और साथ ही रोम रोम में बसी एक ऐसी हकीकत,
जो एक फ़साना बन कर रह गयी…………………रूह के शब्दों में….!!!
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