Wednesday, 11 January 2012

इंतज़ार

मालूम नहीं हैं मुझे,
या यूँ कहूँ,,
मालूम है भी,
पर शायद पूरा विश्वास नहीं है…!!

कि तुम समझ पाते हो या नहीं,
मेरे शब्दों के बीच में,
ख़ामोशी से जगह बना कर बैठे,
उन सवालों,
उन संवेदनाओं को,
जो मैं चेहरे पर नहीं लाती…….

कि तुम समझ पाते हो या नहीं,
मेरे दिमाग में चल रही
उन अस्थिरताओं को,
जो मेरे कानों  तक पहुँचने  ही नहीं देती
तुम्हारी बातों में छिपे मर्म को कभी कभी……..

कि तुम समझ पाते हो या नहीं,
उस ख़ामोशी को,
पी जाती हूँ जिसे मैं अक्सर,
जो जन्म ले लेती है मुझमे,
तुम्हारे तर्कों या हालातों के प्रत्युत्तर में………

कि तुम समझ पाते हो या नहीं,
उन बातों को,
उन विचारों को,
जो मैं कह नहीं पाती अक्सर,
कभी किसी वजह से तो
कभी किसी वजह से………

हर बार
दो चार होती हूँ मैं
इसी तरह की भावनाओं,जज्बातों और
कुछ हद तक आशंकाओं से,

जब उपज जाती हैं
ऐसी सोच भरी चुप्पी में डाल देने वाली क्यारियां,
किसी भी
तर्कसंगत या निर्मूल विचार की बारिश से,
जो जाने अनजाने
गिर जाती है मेरे मन के आँगन में…..

और हर बार
तुम गलत साबित करते हो
इन सभी आशंकाओं को,
मुझे ही यह बता के,
कि क्या सोच रही थी मैं,,,
क्या नहीं कहा मैंने
कब किस पल..!!!


इस बार भी ऐसी ही कशमकश में घिरी बैठी हूँ..!!

और
बस इंतज़ार है
अब उस वक़्त का,
जब
एक बार फिर से 
मेरी खामोशियाँ,,मेरी संवेदनाएं,
तुम्हारे दिल से निकले शब्द रूपों में बहे….!!!

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