जज़्बात
Wednesday, 8 August 2012
तलाश
व्याकुल ”मैं” ने
एक आंसू की तलाश में
सारा अंतर्मन छान मारा,,
छलनी अंतर्मन
पर व्यर्थ…..
आंसू होता तो मिलता ना…..!!
आखिर
सारे साल सूरज का मुंह देखने के बाद तो,,
धरती में भी ”दरारें” ही बचती है,,,
पानी नहीं..!!!!
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment