अपने और दुनिया के मुहाने पर खड़े हैं कुछ इस तरह,
कि कभी इस रस्ते तो कभी उस रस्ते को ताकते हैं..!!
नियति देती नहीं चुनाव की भी सहूलियत इंसा को अक्सर,
जानते हुए भी दिलो दिमाग कहाँ इस व्यूह को मानते हैं..!!
कहते हैं तक़दीर होती है इंसान के अपने ही हाथों में,
पर क्या उसके रास्ते सदा हमारी इच्छा से भागते हैं..!!
नियति और तक़दीर के खेल में खोता इंसान ही है बेवजह,
मगर ज्यादा चिल्लाने से थोड़े ही मंदिर के खुदा जागते हैं..!!
गुस्सा क्यूँ न भरे इंसान के भीतर हालात से,बताओ जरा,
गर मंजिल से कोसों दूर क़दमों तले अनजान रास्ते हैं..!!!
No comments:
Post a Comment