Wednesday 8 August, 2012

मेरी रूह में तेरी शख्सियत कुछ इस तरह समाई हो…

बतलायें मेरी धडकनें मुझसे पहले तेरे दिल को अपनी बातें,
 मेरी रूह में तेरी शख्सियत कुछ इस तरह समाई हो…
 
 पढ़ जाओ मेरे बिन उभरे लफ़्ज़ों की किताब भी तुम एक झटके में,
 तेरे मेरे रिश्ते में समझ की इतनी गहराई हो…
 
 गर मान लो कभी वक़्त लग भी जाए तुम्हे मेरे कोई ख़यालात समझने में,
 तो भी मेरे सब्र और इत्मीनान की दीवार कभी ना चरमरायी हो…
 
 ना कभी पतझड़ आये मेरे एहसासों की शाखों पर,
 दिल की बगिया में सैर करती तेरी मोहब्बत की ऐसी पुरवाई हो…
 
 भरोसे के चप्पू ने इस तरह थाम के रखा हो रिश्ते को,
 कि समर्पण की नैया तूफानों में भी कभी नहीं डगमगाई हो…
 
 जो भी दे हम एक दूजे को,सिर्फ और सिर्फ अपनी ख़ुशी से दे,
 देकर कुछ पाने की उम्मीद कभी ना रिश्ते से लगायी हो…
 
 आने वाले दौर में जब मोहब्बत खो चुकी होगी अपनी ताजमहल सी परिभाषाएं,
 तब हमारी कहानी चोपालों पर बैठ बुढ़ापे ने जवानियों को सुनाई हो…

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