अक्सर पुकारता है,
जब वो पेड़ जिसकी छाँव ने देखा है,
मेरी गोद में तुम्हे,
मंद मंद मुस्कराहट आ जाती है ढेर सारे आंसूओं के साथ,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो बरामदा जिसके क़दमों ने देखा है,
मेरी ओट में तुम्हे,
उठा ले जाते हैं सालों पीछे मुझे तेरी यादों के हाथ,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो ख़त जिसकी बेचैनी ने देखा है,
मेरी लिखावट में तुम्हे,
तकिये को नमकीन करने में गुज़र जाती है मेरी पलकों की रात,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो कोना जिसके सुकून ने देखा है,
मेरे वजूद की जन्चावट में तुम्हे,
नाचने से लगते है मेरे दिल के अनकहे गर्व भरे जज़्बात,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो चौराहा जिसके नुक्कड़ ने देखा है,
मेरे इंतज़ार में तुम्हे,
जीवित हो उठती है अधूरी रह गयी अपनी हर मुलाकात,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो समय जिसकी सुईयों ने देखा है,
मेरे आत्मीय प्यार में तुम्हे,
सिसकियाँ चुनने लगते है दिल के टुकड़े जिस्म से बाहर आने के बाद,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो चाँद जिसकी सफेदी ने देखा है,
मेरे करवा चौथ में तुम्हे,
अंगड़ाई लेने लगते है चाशनी में लिपटे फ़िक्र के संवाद,,
अक्सर पुकारता है,
जब वो फैसला जिसकी रंगत ने देखा है,
मेरे भरोसे की ओस में तुम्हे,
सुगन्धित कर देता है सारे घर को मेरे इश्क की मटकी में अमृत सा भरा नाज,,
अक्सर पुकारता है,
मुझे हर वो बेजान साया,
जिसने मेरे और तुम्हारे रिश्ते को सांस लेते देखा है,,
”क्या तुम्हे भी अक्सर ऐसी पुकारें सुनाई देती हैं”!!!
No comments:
Post a Comment